बिहार का तेजाबकांड आज भी लोग भूले नहीं हैं. इसी सनसनीखेज कांड के बाद सुर्खियों में आया था बिहार के बाहुबली माफिया और नेता शहाबुद्दीन का नाम. यही वो मामला है जिसकी वजह से शहाबुद्दीन को जेल जाना पड़ा था. और इसी मामले में कोई गवाह न मिलने की वजह से शहाबुद्दीन को अदालत ने जमानत पर रिहा किया है. एक बार फिर से यह मामला लोगों को उस खौफनाक वारदात की याद दिला रहा है, जिसे तेजाबकांड के नाम से जाना जाता है.
ऐसा टूटा था एक परिवार पर कहर
बात वर्ष 2004 की है. बिहार के सिवान जिले में चंद्रेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू अपनी पत्नी, बेटी और चार बेटों के साथ रहा करते थे. उनकी मुख्य बाजार में दो दुकानें थीं.
एक किराने की और दूसरी परचून की. एक दुकान पर उनका बेटा सतीश बैठता था, दूसरे पर गिरीश. 16 अगस्त, 2004 का दिन इस परिवार के लिए कयामत बनकर आया. कुछ लोग चंदा बाबू से रंगदारी मांग रहे थे. मगर उन्होंने देने से इनकार कर दिया था. वही लोग उस दिन उनकी किराने की दुकान पर जा पहुंचे. दुकान पर उनका बेटा सतीश बैठा. उन लोगों ने सतीश से रंगदारी के दो लाख रुपये मांगे. सतीश ने 30-40 हजार रुपये देने की बात कही. रंगदारी वसूलने आए लोग ज्यादा थे. उनके हाथों में हथियार थे. उन लोगों ने सतीश के साथ मारपीट शुरू कर दी. गल्ले में रखी दो लाख से ज्यादा की रकम भी निकाल ली. सतीश का बड़ा भाई भी वहां आ गया. वो भी सब देख रहा था. पिटने के बाद सतीश घर में गया. और बाथरूम साफ करने वाला तेजाब एक मग में डालकर लाया. सारा तेजाब उसने रंगदारी वसूलने आए बदमाशों पर फेंक दिया. तेजाब के छीटें उसके भाई राजीव पर भी पड़े. इसके बाद वहां भगदड़ मच गई.
दो भाईयों को नहलाया था तेजाब से
दुकान पर बदमाशों ने सतीश को पकड़ लिया. उसका भाई राजीव भागकर कहीं छिप गया. फिर उसकी दुकान को लूटा गया. उसके बाद दुकान में आग लगा दी गई. बदमाश सतीश को एक गाड़ी में डालकर अपने साथ ले गए. दूसरी दुकान पर बैठे गिरीश को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी. कुछ देर बाद उसके पास भी हथियारबंद बदमाश पहुंचे और उसे भी वहां से अगवा कर लिया गया. इसके बाद सतीश और गिरीश का बड़ा भाई राजीव भी उन बदमाशों के हत्थे चढ़ चुका था. रंगदारी न देने की वजह से उनकी दोनों दुकाने लूट ली गईं. फिर तीनों भाईयों को एक जगह ले जाया गया. जहां राजीव को रस्सी से बांध दिया गया. उसके बाद सरेआम सतीश और गिरीश के ऊपर तेजाब से भरी बाल्टी उड़ेल दी गई. बड़े भाई की आंखों के सामने सतीश और गिरीश को तेजाब से जलाकर मार डाला गया. इसके बाद उन दोनों की लाश के टुकड़े टुकड़े करके बोरे में भरकर फेंक दिए गए.
वारदात के दिन पटना में थे चंदा बाबू
जिस दिन ये सनसनीखेद वारदात अंजाम दी गई, उस दिन सतीश और गिरीश के पिता चंदा बाबू अपने भाई के पास पटना गए हुए थे. वारदात की ख़बर पूरे सिवान में आग की तरह फैल गई. किसी ने पटना में चंदा बाबू को फोन करके कहा कि वह सिवान नहीं आएं. अगर आए तो मार दिए जाएंगें. उन्हें बताया गया कि उनके दो बेटे मारे जा चुके हैं, जबकि एक बेटा कैद में है. राजीव वहीं बदमाशों की कैद था. मगर दो दिनों बाद वह भागने में कामयाब हो गया. वह किसी तरह से गन्ने से लदे एक ट्रैक्टर में छिपकर चैनपुर जा पहुंचा. वहां से वो उत्तर प्रदेश के पड़रौना जा पहुंचा. वहां उसने स्थानीय सांसद के घर शरण ली. इस दौरान चंदा बाबू की पत्नी, दोनों बेटियां और एक अपाहिज बेटा भी घर छोड़कर जा चुके थे. सारा परिवार बिखर चुका था. इस दौरान चंदा बाबू को ख़बर मिली कि उनका तीसरा बेटा भी मारा गया है.
चंदा बाबू को मारने की थी साजिश
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक दिन किसी ने चंदा बाबू को फोन करके सूचना दी कि आपका बेटा छत से गिर गया है. मगर इस सूचना के पीछे असली मकसद उन्हें बुलाकर खत्म करना था. इसके लिए बदमाशों ने यह एक साजिश रची थी. बावजूद इसके चंदा बाबू हिम्मत जुटाकर सिवान पहुंच गए. उन्होंने वहां पुलिस अधीक्षक से मिलने की कोशिश की लेकिन उन्हें एसपी से मिलने नहीं दिया गया. थाने पहुंचे तो वहां दारोगा ने कहा कि आप फौरन सिवान छोड़ दिजीए. उसके बाद चंदा बाबू छपरा के सांसद को लेकर पटना में एक बड़े नेता के पास गए. मगर नेता ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि मामला सिवान का है, तो वह कुछ नहीं कर सकते. इस दौरान बदमाशों को चंदा बाबू के नेता से मिलने की खबर लग गई. उन्होंने चंदा बाबू के पटना वाले भाई को फोन करके धमकी दे डाली. वो धमकी से इतना घबरा गए कि उन्होंने फौरन चंदा बाबू का साथ छोड़ दिया और फौरन अपना तबादला पटना से मुंबई करा लिया. वहां जाने के बाद भी उनको धमकी भरे फोन किए गए जिसकी वजह से उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मौत हो गई.
जिला पुलिस ने नहीं की थी मदद
इसके बाद चंदा बाबू पटना में ही रहने लगे. वह पूरी तरह से बेसुध थे. उनकी हालत किसी साधु की तरह हो गई थी. वह कई दिनों तक इधर से उधर घूमते रहे. बाद में एक विधायक ने उन्हें शरण दी. इसी बीच चंदा बाबू को पता चला कि उनका बेटा राजीव अभी जिंदा है. इस खबर ने उनमें एक नई उर्जा भर दी. इसके बाद पटना में ही चंदा बाबू किसी तरह से एक बार फिर सोनपुर के एक बड़े नेता से मिले. और उनसे सुरक्षा दिलाने की गुहार लगाई. नेता ने मदद का आश्वासन दिया और बिहार के डीजीपी नारायण मिश्र को निर्देश दिया. डीजीपी ने आईजी को पत्र लिखा. आईजी ने डीआईजी को और फिर डीआईजी ने एसपी को पत्र लिखा. मगर हुआ कुछ नहीं. चंदा बाबू निराश होकर दिल्ली चले गए. वहां उनकी मुलाकात राहुल गांधी से हुई. मगर केवल आश्वासन मिला. हिम्मत करके चंदा बाबू फिर सिवान आए. एसपी के पास जाने का मन बनाया. मगर उनका कोई रिश्तेदार या दोस्त उनके साथ जाने को तैयार नहीं हुआ. जब कुछ नहीं हुआ तो चंदा बाबू अकेले ही एक सुबह एसपी से मिलने उनके घर जा पहुंचे. एसपी मिलकर सुरक्षा की गुहार लगाई. डीआईजी की चिट्ठी भी एसपी को दी. मगर एसपी ने भी चंदा बाबू को सिवान छोड़ देने की बात कही.
राजीव की सरेआम हत्या
निराश होकर चंदा बाबू फिर से डीआईजी ए.के. बेग से मिलने पहुंच गए. डीआईजी ने उनकी बात सुनकर एसपी को फटकार लगाई और फौरन सुरक्षा देने के लिए कहा. उसके बाद चंदा बाबू को सुरक्षा मिल गई. तब वह सिवान में ही रहने लगे. इसी बीच एक दिन उनका बेटा राजीव लौट आया. उसके साथ चंदा बाबू की पत्नी, बेटियां और विकलांग भाई भी वापस आ गए. कुछ दिनों बाद राजीव की शादी हो गई. मगर मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुईं थीं. शादी के 18वें दिन ही 16 जून, 2014 को राजीव की सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई. राजीव अपने भाईयों की हत्या का अकेला चश्मदीद गवाह था. इस बाबत राजीव पहले भी कोर्ट में बयान दे चुका था. तब भी उसे जान से मारने की धमकी दी गई थी.
शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी
2004 में तेजाब कांड के नाम से मशहूर सनसनीखेज हत्या कांड में शहाबुद्दीन के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया था. लेकिन गिरफ्तारी नहीं हुई थी. मगर वर्ष 2005 में बिहार का निजाम बदला. नीतीश कुमार की सरकार आ गई. और शहाबुद्दीन पर शिकंजा कस गया. उसी साल शहाबुद्दीन को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था. तभी से शहाबुद्दीन को कड़ी निगरानी के बीच जेल में रखा गया. वीडियों कॉफ्रेंसिंग के जरिए ही अदालत में उनकी सुनावाई होती थी. शहाबुद्दीन को निचली अदालत ने इस बीच कई मामलों में सजा सुनाई. उनके खिलाफ 39 हत्या और अपहरण के मामले थे. 38 में उन्हें जमानत मिल चुकी थी. 39वां केस राजीव का था. जो अपने दो सगे भाईयों की हत्या का चश्मद्दीद गवाह था. मगर 2014 में उसकी हत्या के साथ ही शहाबुद्दीन की जमानत का रास्ता साफ हो गया था.
और आखिरकार 11 साल बाद शहाबुद्दीन जमानत पर बाहर आ गए. लेकिन उनके बाहर आने से सूबे की सियासत में हलचल मच गई. अब एक बार फिर इस मामले में सबकी निगाहें नीतीश कुमार की तरफ लगी हैं.