यूपी, एमपी और बिहार में घमासान
बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश. उत्तर भारत के तीन बड़े हिंदी भाषी राज्य. वैसे तो यहां की सियासत में मौजूदा समय में कोई समानता नहीं है. तीनों राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें हैं. लेकिन राजनीतिक हालात तीनों ही राज्यों में एक से बने हैं. बिहार में बाहुबली की जेल की रिहाई को लेकर महागठबंधन के भीतर रार छिड़ी हुई है, तो उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी के मुखिया के परिवार में घमासान मचा हुआ है. दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में 13 साल से शासन कर रही बीजेपी के नेताओं की बयानबाजी और अंदरूनी कलह पार्टी के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है.
बिहार में बाहुबली पर सियासत
हाल में जेल से रिहा हुए गैंगस्टर और आरजेडी नेता शहाबुद्दीन के मसले पर महागठबंधन में सरकार बनने के 10 महीने बाद पहली बार बड़ी दरार नजर आ रही है. शहाबुद्दीन ने जेल से बाहर आने के बाद कहा कि उनके नेता लालू प्रसाद हैं और नीतीश कुमार 'परिस्थितियों के नेता' हैं. शहाबुद्दीन के इस बयान के बाद ही सूबे की सियासत गरमाने लगी. नीतीश कुमार ने इस टिप्पणी को ज्यादा तूल न देते हुए कहा था कि हर कोई जानता है कि जनादेश किसे मिला है.
शहाबुद्दीन और नीतीश के बयानों पर आरजेडी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने शहाबुद्दीन के बयान को जायज ठहराते हुए कहा, 'गठबंधन में बहुत सारी पार्टियां हैं और लालू हमारे नेता हैं. गठबंधन के सहयोगियों ने नीतीश कुमार को सीएम बनाने का फैसला लिया. मैंने इसका समर्थन नहीं किया, लेकिन वो फैसला ले चुके थे.'
ऐसे बढ़ीं महागठबंधन की मुश्किलें
रघुवंश के इस बयान पर जेडीयू भड़क गई. पार्टी नेताओं ने लालू प्रसाद से अपील की कि वो रघुवंश जैसे नेताओं पर लगाम लगाएं और अपना गठबंधन धर्म निभाएं. महागठबंधन की सहयोगी कांग्रेस ने भी आरजेडी नेताओं को चेतावनी दी कि सरकार में रहकर सीएम नीतीश कुमार का विरोध बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. अगर आरजेडी को नीतीश कुमार से शिकायत है तो वह गठबंधन से बाहर हो जाए.
इन सभी के अलावा सुशासन बाबू के तौर पर मशहूर नीतीश कुमार के राज में शहाबुद्दीन की रिहाई को लेकर विपक्षी बीजेपी राज्य सरकार पर हमला बोल रही है. ऐसी भी अटकलें हैं कि सीएम की छवि को देखते हुए राज्य सरकार शहाबुद्दीन को क्राइम कंट्रोल एक्ट के तहत फिर से जेल में डाल सकती है. देखना दिलचस्प होगा कि शहाबुद्दीन की रिहाई को लेकर उठा सियासी घमासान कौन सा मोड़ लेता है. क्या शहाबुद्दीन को जेल होगी या महागठबंधन टूट जाएगा?
यूपी में सपा कुनबे में घमासान
उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ सियासी परिवार में छिड़ी पावर पॉलिटिक्स अब सतह पर आ गई है. सोमवार को मुलायम सिंह और शिवपाल के करीबी दो मंत्रियों गायत्री प्रजापति और राज किशोर सिंह को कैबिनेट से बाहर करने के बाद मंगलवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चीफ सेक्रेटरी दीपक सिंघल की भी छुट्टी कर दी. इस उठापटक में शाम ढलते-ढलते अखिलेश यादव को यूपी प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया. मुलायम ने उनकी जगह शिवपाल यादव को यूपी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी. वहीं, पलटवार करते हुए सीएम ने मंगलवार देर शाम शिवपाल को तीन मंत्रालयों से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
अखिलेश और शिवपाल के बीच मनमुटाव का मामला अब नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव के दरबार में पहुंचा है. नेताजी ने अखिलेश और शिवपाल को दिल्ली तलब किया तो शिवपाल उनसे मिलने दिल्ली पहुंच गए लेकिन अखिलेश ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने बुधवार को कहा कि यह लड़ाई परिवार में नहीं, सरकार में है. अखिलेश ने यह भी कहा कि कुछ फैसले नेताजी के कहने पर लिए गए हैं, कुछ उन्होंने (सीएम ने) खुद लिए हैं.
पिछले दिनों मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय को लेकर भी शिवपाल और अखिलेश के बीच अनबन हुई थी. शिवपाल सिंह की पहल पर कौमी एकता दल का सपा में विलय कराया गया था, लेकिन अपनी इमेज को लेकर चिंतित सीएम अखिलेश ने इसका विरोध किया और मुलायम सिंह यादव को खुद ऐलान करना पड़ा कि मुख्तार अंसारी की पार्टी का सपा में विलय नहीं होगा.
यूपी में विधानसभा चुनाव को महज छह महीने बचे हैं. ऐसे में सियासी कुनबे में घमासान अखिलेश सरकार के लिए नुकसानदायक होगी या फिर सियासी रणनीति के तहत यादव परिवार अगले चुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर रहा है. जानकार मानते हैं कि शिवपाल को सरकार से अलग करते हुए संगठन की जिम्मेदारी सौंपकर उन्हें चुनाव के मैनेजमेंट में लगाने की तैयारी है और विकास के नाम पर सीएम अखिलेश को आगे करते हुए युवाओं का वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश है.
मध्य प्रदेश में बयानबाजी से फजीहत
सरकार के खिलाफ बयानबाजी को लेकर अपने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को नसीहत देने वाले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान अब अपनी गलती पर बैकफुट पर नजर आ रहे हैं. विजयवर्गीय प्रदेश सरकार और पार्टी को लेकर और भी मुखर होते जा रहे हैं और एक तरह से उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
पिछले दिनों मध्यप्रदेश बीजेपी के दो बड़े नेताओं कैलाश विजयवर्गीय और गोपाल भार्गव ने पार्टी के आंतरिक हालातों और सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए थे. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय ने इंदौर मेट्रो को लेकर सरकार पर तंज कसा था, तो पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री भार्गव ने पार्टी में चल रही अंतर्कलह को लेकर बयान दिया था और आगामी चुनाव में बीजेपी का भाजपा से मुकाबले की बात कही थी.
इन बयानों को लेकर पंचमढ़ी में चिंतन कर रहे प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान से जब मीडिया ने सवाल पूछा तो पार्टी में अपनी हैसियत भूलकर उन्होंने विजयवर्गीय को नसीहत दे डाली थी और कहा था कि उन्हें राजधर्म का पालन करना चाहिए और जब से वो दिल्ली गए हैं, उनकी प्रदेश के बारे में समझ कम हो गई है.
वहीं भार्गव के बयान को लेकर भी चौहान ने उनसे फोन पर बात की थी. भार्गव ने तो अपने बयान को लेकर सफाई पेश कर दी थी, लेकिन राष्ट्रीय महासचिव ने अब नंदकुमार चौहान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और चौहान बचाव की मुद्रा में आ गए हैं.
बहरहाल, सूबे में हालात ये हो गए हैं कि पार्टी इन मामलों पर जितना पर्दा डालने की कोशिश कर रही है, ये सारे विवाद बंद कमरों से निकलकर मीडिया की सुर्खियां बन रहे हैं.
बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश. उत्तर भारत के तीन बड़े हिंदी भाषी राज्य. वैसे तो यहां की सियासत में मौजूदा समय में कोई समानता नहीं है. तीनों राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें हैं. लेकिन राजनीतिक हालात तीनों ही राज्यों में एक से बने हैं. बिहार में बाहुबली की जेल की रिहाई को लेकर महागठबंधन के भीतर रार छिड़ी हुई है, तो उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी के मुखिया के परिवार में घमासान मचा हुआ है. दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में 13 साल से शासन कर रही बीजेपी के नेताओं की बयानबाजी और अंदरूनी कलह पार्टी के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है.
बिहार में बाहुबली पर सियासत
हाल में जेल से रिहा हुए गैंगस्टर और आरजेडी नेता शहाबुद्दीन के मसले पर महागठबंधन में सरकार बनने के 10 महीने बाद पहली बार बड़ी दरार नजर आ रही है. शहाबुद्दीन ने जेल से बाहर आने के बाद कहा कि उनके नेता लालू प्रसाद हैं और नीतीश कुमार 'परिस्थितियों के नेता' हैं. शहाबुद्दीन के इस बयान के बाद ही सूबे की सियासत गरमाने लगी. नीतीश कुमार ने इस टिप्पणी को ज्यादा तूल न देते हुए कहा था कि हर कोई जानता है कि जनादेश किसे मिला है.
शहाबुद्दीन और नीतीश के बयानों पर आरजेडी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने शहाबुद्दीन के बयान को जायज ठहराते हुए कहा, 'गठबंधन में बहुत सारी पार्टियां हैं और लालू हमारे नेता हैं. गठबंधन के सहयोगियों ने नीतीश कुमार को सीएम बनाने का फैसला लिया. मैंने इसका समर्थन नहीं किया, लेकिन वो फैसला ले चुके थे.'
ऐसे बढ़ीं महागठबंधन की मुश्किलें
रघुवंश के इस बयान पर जेडीयू भड़क गई. पार्टी नेताओं ने लालू प्रसाद से अपील की कि वो रघुवंश जैसे नेताओं पर लगाम लगाएं और अपना गठबंधन धर्म निभाएं. महागठबंधन की सहयोगी कांग्रेस ने भी आरजेडी नेताओं को चेतावनी दी कि सरकार में रहकर सीएम नीतीश कुमार का विरोध बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. अगर आरजेडी को नीतीश कुमार से शिकायत है तो वह गठबंधन से बाहर हो जाए.
इन सभी के अलावा सुशासन बाबू के तौर पर मशहूर नीतीश कुमार के राज में शहाबुद्दीन की रिहाई को लेकर विपक्षी बीजेपी राज्य सरकार पर हमला बोल रही है. ऐसी भी अटकलें हैं कि सीएम की छवि को देखते हुए राज्य सरकार शहाबुद्दीन को क्राइम कंट्रोल एक्ट के तहत फिर से जेल में डाल सकती है. देखना दिलचस्प होगा कि शहाबुद्दीन की रिहाई को लेकर उठा सियासी घमासान कौन सा मोड़ लेता है. क्या शहाबुद्दीन को जेल होगी या महागठबंधन टूट जाएगा?
यूपी में सपा कुनबे में घमासान
उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ सियासी परिवार में छिड़ी पावर पॉलिटिक्स अब सतह पर आ गई है. सोमवार को मुलायम सिंह और शिवपाल के करीबी दो मंत्रियों गायत्री प्रजापति और राज किशोर सिंह को कैबिनेट से बाहर करने के बाद मंगलवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चीफ सेक्रेटरी दीपक सिंघल की भी छुट्टी कर दी. इस उठापटक में शाम ढलते-ढलते अखिलेश यादव को यूपी प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया. मुलायम ने उनकी जगह शिवपाल यादव को यूपी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी. वहीं, पलटवार करते हुए सीएम ने मंगलवार देर शाम शिवपाल को तीन मंत्रालयों से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
अखिलेश और शिवपाल के बीच मनमुटाव का मामला अब नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव के दरबार में पहुंचा है. नेताजी ने अखिलेश और शिवपाल को दिल्ली तलब किया तो शिवपाल उनसे मिलने दिल्ली पहुंच गए लेकिन अखिलेश ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने बुधवार को कहा कि यह लड़ाई परिवार में नहीं, सरकार में है. अखिलेश ने यह भी कहा कि कुछ फैसले नेताजी के कहने पर लिए गए हैं, कुछ उन्होंने (सीएम ने) खुद लिए हैं.
पिछले दिनों मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के सपा में विलय को लेकर भी शिवपाल और अखिलेश के बीच अनबन हुई थी. शिवपाल सिंह की पहल पर कौमी एकता दल का सपा में विलय कराया गया था, लेकिन अपनी इमेज को लेकर चिंतित सीएम अखिलेश ने इसका विरोध किया और मुलायम सिंह यादव को खुद ऐलान करना पड़ा कि मुख्तार अंसारी की पार्टी का सपा में विलय नहीं होगा.
यूपी में विधानसभा चुनाव को महज छह महीने बचे हैं. ऐसे में सियासी कुनबे में घमासान अखिलेश सरकार के लिए नुकसानदायक होगी या फिर सियासी रणनीति के तहत यादव परिवार अगले चुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर रहा है. जानकार मानते हैं कि शिवपाल को सरकार से अलग करते हुए संगठन की जिम्मेदारी सौंपकर उन्हें चुनाव के मैनेजमेंट में लगाने की तैयारी है और विकास के नाम पर सीएम अखिलेश को आगे करते हुए युवाओं का वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश है.
मध्य प्रदेश में बयानबाजी से फजीहत
सरकार के खिलाफ बयानबाजी को लेकर अपने राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को नसीहत देने वाले बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान अब अपनी गलती पर बैकफुट पर नजर आ रहे हैं. विजयवर्गीय प्रदेश सरकार और पार्टी को लेकर और भी मुखर होते जा रहे हैं और एक तरह से उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
पिछले दिनों मध्यप्रदेश बीजेपी के दो बड़े नेताओं कैलाश विजयवर्गीय और गोपाल भार्गव ने पार्टी के आंतरिक हालातों और सरकार के कामकाज पर सवाल उठाए थे. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव विजयवर्गीय ने इंदौर मेट्रो को लेकर सरकार पर तंज कसा था, तो पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री भार्गव ने पार्टी में चल रही अंतर्कलह को लेकर बयान दिया था और आगामी चुनाव में बीजेपी का भाजपा से मुकाबले की बात कही थी.
इन बयानों को लेकर पंचमढ़ी में चिंतन कर रहे प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चौहान से जब मीडिया ने सवाल पूछा तो पार्टी में अपनी हैसियत भूलकर उन्होंने विजयवर्गीय को नसीहत दे डाली थी और कहा था कि उन्हें राजधर्म का पालन करना चाहिए और जब से वो दिल्ली गए हैं, उनकी प्रदेश के बारे में समझ कम हो गई है.
वहीं भार्गव के बयान को लेकर भी चौहान ने उनसे फोन पर बात की थी. भार्गव ने तो अपने बयान को लेकर सफाई पेश कर दी थी, लेकिन राष्ट्रीय महासचिव ने अब नंदकुमार चौहान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और चौहान बचाव की मुद्रा में आ गए हैं.
बहरहाल, सूबे में हालात ये हो गए हैं कि पार्टी इन मामलों पर जितना पर्दा डालने की कोशिश कर रही है, ये सारे विवाद बंद कमरों से निकलकर मीडिया की सुर्खियां बन रहे हैं.
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